बुधवार, 26 दिसंबर 2012

" नमो भारतेंद्र "



स्व. श्रीमती इंदिरागांधी 'निर्भीक', 'कुशल नीति निर्धारक', 'साहसी' एवं  'दूरद्रष्टा' राजनेता / शासक  थी।  उन्हें अनुशासन, मेहनत और ईमानदारी में पूर्ण विश्वास था। 
वे समय रहते, समस्याओं की तह तक जा कर 'समाधान' खोज निकालती थी। 'विपक्ष्'  को वे भरपूर सम्मान देती थी। वर्ष 1971 के पाकिस्तान युद्ध के दौरान माननीय 'श्री अटल बिहारी वाजपेई' ने उन्हें "दुर्गा" उपमा दी थी। देश के कश्मीर , नार्थ ईस्ट आदि क्षेत्रों में 'अलगाववादी समस्याएं' उनके शासनकाल में न के बराबर थी। चापलूस नेता उनके इर्द गिर्द अधिक समय तक टिक नहीं पाते  थे।  संजय गाँधी के 'आक्रामक' व्यक्तित्व के कारण उनके शासनकाल की कुछ कमियों को छोड़ कर "भारत का भविष्य" उनके हाथ पूर्णतया सुरक्षित था।  उनका दिया हुआ नारा एवं उनका 'बलिदान'  युगों तक याद रखा जायेगा -

"एक ही जादू -  कड़ी मेहनत -  दूर दृष्टि - पक्का इरादा - अनुशासन"

स्व. राजीव गाँधी  भी  'कुशल नीति निर्धारक' एवं 'विवेकशील' थे। कहा जाता है कि नये राजनीतिज्ञ होने के कारण वे  अति चतुर नहीं थे और 'राजनीति' की  'भीतरघात' के शिकार बन गए  अन्यथा वे अच्छे  शासक  सिद्ध होते। 

इस बीच कई शासक आये और जुगनू की तरह टिम टिमा कर अस्त हो गए।

'श्री नरसिम्हाराव' चतुर शासक होते हुए भी येन केन प्रकारेण ' मौनीबाबा' बनकर अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण करने में ही व्यस्त रहे। 'देश' उचित विकाश की बात जोहता रहा।

'श्री अटल बिहारी वाजपेई' के समय देश में 'स्थिरता' एवं 'विकाश' का आभाष  होने लगा था।'बहुदलीय सरकार' (जिसे उन्होंने खुद "भानुमती का कुनबा' संज्ञा दी थी) बखूबी चलाने का प्रथम श्रेय ' अटल जी' को ही जाता है। कई चहुमुखी  विकाश योजनायें परवान चडी पर वर्षों से 'कमी' की पूर्ति महज पांच - छह सालों में होनी मुश्किल ही नहीं असंभव भी थी। कहते हैं अगले चुनाव में ' अटल जी' को अलग - थलग कर उनके द्वारा संचालित विकाश योजनाओं का 'श्रेय' लेने की होड़ ने 'अटल जी' को बहुत निराश किया। फलस्वरूप समयांतराल के बाद ' अटल जी' ने स्वास्थ्य  कारणों से सक्रिय राजनीति से किनारा कर लिया।

वर्तमान में 'श्री मनमोहन सिंह'  श्रीमती सोनियां गाँधी की अध्यक्षता में जिस तरह 'शासन' चला रहे हैं किसी से छिपा नहीं है। 

'श्री राहुल गाँधी' से उम्मीदें की जा रही है , वे सहानुभूति के पात्र अवश्य महसूस होते हैं पर 'राजनितिक परिपक्वता' का कोई ठोस सा उदाहरण वे अभी तक नहीं पेश कर पाए। लगता है देश को उनकी सेवाएं लेने हेतु अभी और इंतज़ार करना पड़ेगा।

भविष्य एक कुशल एवं परिपक्व राजनेता ( इन्द्र) की बाट  जोह रहा है .. और वो खूबियाँ दिख रही हैं "नरेन्द्र मोदी" में। 

'इंदिरा' के बाद ' नरेन्द्र' ही 'निर्भीक', 'कुशल नीति निर्धारक', 'साहसी' एवं  'दूरद्रष्टा' राजनेता / शासक हो सकते हैं। 

अतः "नरेन्द्र मोदी" अगर अगले "भारतेन्द्र" बनते  हैं तो एसा लगता है 'भारत'अवश्य ही एक नए युग में प्रवेश करेगा।